बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 मनोविज्ञान बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 मनोविज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 मनोविज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- विकास सम्प्रत्यय की व्याख्या कीजिए तथा इसके मुख्य नियमों को समझाइए।
अथवा
मानव विकास के प्रमुख निमयों की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
आधुनिक विकासात्मक मनोविज्ञान व्यक्ति में जीवन पर्यन्त घटित होते रहने वाले विकासात्मक परिवर्तन का वैज्ञानिक अध्ययन सम्पन्न कर, उसके व्यवहार और समायोजन की प्रकृति को उजागर करता है। मनोविज्ञान की इस प्रशाखा को मानव विकास का मनोविज्ञान या विकासात्मक मनोविज्ञान के नाम से जाना जाता है। व्यक्ति के सम्पूर्ण जीवन को विकास और परिवर्तनों की एक अविच्छिन्न श्रृंखला माना जाता है। जन्म के उपरान्त बालक विकास प्रक्रिया के कारण अपूर्णता से पूर्णता की ओर बढ़ने लगता है और एक दिन एक स्वस्थ प्रौढता प्राप्त कर लेता है।
गर्भ में आने के बाद शीघ्र ही प्राणी के भीतर वृद्धि एवं विकास के लक्षण उत्पन्न होने लगते हैं। शारीरिक और मानसिक संरचना में समय-समय पर अनेक मांत्रात्मक और गुणात्मक परिवर्तन दिखाई पड़ने लगते है । प्राणी अपने संम्पूर्ण जीवन प्रसार में कभी भी स्थिर नहीं पाया जाता। जीवन की विभिन्न अवस्थाओं में पहुँचने पर उसके भीतर नयी-नयी विशेषताओं का आविर्भाव तथ पुरानी विशेषताओं का लोप होता रहता है। जीवित और सक्रिय बने रहने के लिए प्राणी के भीतर निरन्तर परिवर्तनों का अविर्भाव आवश्यक है। इन्हीं शारीरिक-मानसिक परिवर्तनों, गुणों तथा विशेषताओं की नियमित और क्रमिक उत्पत्ति को वैज्ञानिक शब्दावली में विकास कहा जाता है।
(Principles of Development)
सम्पूर्ण विकास प्रक्रिया का अवलोकन करने से पता चलता है कि इन्हीं निमयों के अनुसार विकास में विविध प्रकार के व्यवहार-संबन्धी परिवर्तन घटित होते रहते हैं
1. विकास एक निश्चित क्रम का अनुसरण करता है - जहाँ तक शारीरिक क्रियाओं के विकास का प्रश्न है, ये दो निश्चित क्रमों का पालन करती हैं। ये दोनों क्रम हैं-
(क) मस्तकाधोमुखी विकास क्रम - मस्तकाधोमुखी विकास क्रम का अर्थ है कि शारीरिक क्रियाएँ सिर के भाग से प्रारम्भ होकर पैर की ओर बढ़ती हैं। सबसे पहले सिर, मुख और गर्दन की क्रियाएँ विकसित होती हैं और बाद में पेट और धड़ की, पैर के भाग की क्रियाएँ सबसे अंत में विकसित होती हैं। मानसिक क्रियाओं के विकास में भी इसी क्रम का अनुसरण देखा जाता है। प्रयोगात्मक अवलोकन के आधार पर शेरमन ने बताया है कि नवजात शिशुओं के शरीर के ऊपरी भागों में संवेदनाएँ नीचे के भागों की अपेक्षा शीघ्र होने लगती है।
(ख) निकट दूर विकासक्रम निकट दूर विकास क्रम के अनुसार - शरीर के केन्द्रीय भागों में विकास पहले प्रारम्भ हो जाता है और केन्द्र से दूर को भागों में बाद में होता है । उदाहरण- पेट और धड़ के अंगों में क्रियाशीलता जल्दी देखी जाती है।
(2) विकास सामान्य से विशिष्ट अनुक्रियाओं की ओर चलता है - विकास प्रक्रिया का दूसरा नियम यह भी है कि प्राणी में पहले सामान्य अनुक्रियाएँ उत्पन्न होती हैं और फिर उन्हीं से विशिष्ट क्रियाएँ विकसित होती हैं। उदाहरण- खिलौने को हाथ से पकड़ने के लिए शिशु अपने पूरे शरीर को खिलौने की दिशा में ही झुकाता है।
उक्त नियम मानसिक क्रियाओं के विकास में भी कार्य करता है। उदाहरण - संवेगात्मक विकास में जन्म के बाद कुछ दिनों तक यह स्पष्ट रूप से नहीं बताया जा सकता है कि बच्चे के मुख मंडल पर किस संवेग का प्रकाशन है। कुछ दिनों के बाद ही यह पता चल पाता है कि अमुक भाव प्रकाशन, प्रेम, घृणा अथवा क्रोध के संवेग की अभिव्यक्ति है।
(3) विकास की गति में तीव्रता और मन्दता पाई जाती है - अनुसंधानकर्त्ताओं के अनुसार, विकास सदा समान गति से ही नहीं आगे बढ़ता, बल्कि उसकी गति में उतार-चढ़ाव भी पाया जाता है।
(4) विकास के विभिन्न स्वरूप परस्पर संबंधित होते हैं - किसी एक क्षेत्र में होने वाला विकास दूसरे क्षेत्रों से होने वाले विकासों की काफी सीमा तक संबंधित होता है। जिस बालक में शारीरिक क्रियाएँ जल्दी विकसित होती है। उसके भीतर मानसिक प्रक्रियाएँ, संवेग, सामाजिकता और भाषा आदि का विकास भी शीघ्र ही प्रारंभ हो जाता है।
(5) भिन्न-भिन्न अंगों का विकास भिन्न-भिन्न गति से होता है - शारीरिक विकास के लिए पेशीय परिपक्वता आवश्यक दशा मानी जाती है। जिस भाग में जब भी परिपक्वता आ जाती है उसमें उसी समय क्रियाओं का विकास आरम्भ हो जाता है। यही नियम मानसिक क्रियाओं के विकास में भी लागू होता है।
(6) विकास की प्रत्येक अवस्था की अपनी प्रमुख विशेषताएँ रखती है - विकास की प्रत्येक अवस्था अपने कुछ विशेष गुणों के लिए प्रसिद्ध होती है। प्रत्येक अवस्था में पहुँचकर बालक कुछ ऐसे गुणों का प्रदर्शन करता है जो अन्य अवस्थाओं में या तो पाये ही नहीं जाते या बहुत साधारण रूप में विद्यमान रहते हैं जैसे- गर्भकालीन अवस्था में शारीरिक विकास।
(7) विकास परिपक्वता एवं अधिगम की अंतःक्रिया का परिणाम होता है - विकास के संबंध में यह एक प्रधान तथ्य माना जाता है कि बालक का विकास चाहे वह शारीरिक हो या मानसिक, परिपक्वता और अधिगम दोनों की अंतक्रियाओं का परिणाम होता है।
(8) विकास एक अविराम प्रक्रिया है - विकास की प्रक्रिया प्राणी के जीवन में कभी रुकती नहीं । विभिन्न अवस्थाओं में उसकी गति मंद या तीव्र अवश्य हो जाती है। यह बात शारीरिक और मानसिक दोनों ही प्रकार की क्रियाओं में पायी जाती है।
(9) विकास के संबंध में भविष्यवाणी की जा सकती है - विकास की प्रत्येक अवस्था में कुछ विशेष प्रकार के गुणों का आविर्भाव होता है। सभी सामान्य बालकों में ये गुण प्रायः एक ही अवस्था में उत्पन्न होते हैं। अतः माता-पिता तथा बच्चों की देख-रेख करने वाले अन्य व्यक्तियों के लिए यह सम्भव है कि वे किसी विशेष अवस्था में बालक में होने वाले परिवर्तनों की भविष्यवाणी कर सकें। परन्तु ऐसी भविष्यवाणी केवल सामान्य बालकों के ही विषय में की जा सकती है।
अतः कह सकते हैं कि व्यवहार के पूर्वकथन और नियंत्रण की दृष्टि से भी विकास प्रक्रिया की विशेषताओं को भली-भांति जान लेना श्रेयस्कर माना जाता है।
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- प्रश्न- मानव विकास को परिभाषित करते हुए इसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- विकास सम्प्रत्यय की व्याख्या कीजिए तथा इसके मुख्य नियमों को समझाइए।
- प्रश्न- मानव विकास के सम्बन्ध में अनुदैर्ध्य उपागम का वर्णन कीजिए तथा इसकी उपयोगिता व सीमायें बताइये।
- प्रश्न- मानव विकास के सम्बन्ध में प्रतिनिध्यात्मक उपागम का विस्तार से वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मानव विकास के सम्बन्ध में निरीक्षण विधि का विस्तार से वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- व्यक्तित्व इतिहास विधि के गुण व सीमाओं को लिखिए।
- प्रश्न- मानव विकास में मनोविज्ञान की भूमिका की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- मानव विकास क्या है?
- प्रश्न- मानव विकास की विभिन्न अवस्थाएँ बताइये।
- प्रश्न- मानव विकास को प्रभावित करने वाले तत्वों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मानव विकास के अध्ययन की व्यक्ति इतिहास विधि का वर्णन कीजिए
- प्रश्न- विकासात्मक अध्ययनों में वैयक्तिक अध्ययन विधि के महत्व पर प्रकाश डालिए?
- प्रश्न- चरित्र-लेखन विधि (Biographic method) पर प्रकाश डालिए ।
- प्रश्न- मानव विकास के सम्बन्ध में सीक्वेंशियल उपागम की व्याख्या कीजिए ।
- प्रश्न- प्रारम्भिक बाल्यावस्था के विकासात्मक संकृत्य पर टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- गर्भकालीन विकास की विभिन्न अवस्थाएँ कौन-सी है ? समझाइए ।
- प्रश्न- गर्भकालीन विकास को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारक कौन-से है। विस्तार में समझाइए।
- प्रश्न- नवजात शिशु अथवा 'नियोनेट' की संवेदनशीलता का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- क्रियात्मक विकास से आप क्या समझते है ? क्रियात्मक विकास का महत्व बताइये ।
- प्रश्न- क्रियात्मक विकास की विशेषताओं पर टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- क्रियात्मक विकास का अर्थ एवं बालक के जीवन में इसका महत्व बताइये ।
- प्रश्न- संक्षेप में बताइये क्रियात्मक विकास का जीवन में क्या महत्व है ?
- प्रश्न- क्रियात्मक विकास को प्रभावित करने वाले तत्व कौन-कौन से है ?
- प्रश्न- क्रियात्मक विकास को परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- प्रसवपूर्व देखभाल के क्या उद्देश्य हैं ?
- प्रश्न- प्रसवपूर्व विकास क्यों महत्वपूर्ण है ?
- प्रश्न- प्रसवपूर्व विकास को प्रभावित करने वाले कारक कौन से हैं ?
- प्रश्न- प्रसवपूर्व देखभाल की कमी का क्या कारण हो सकता है ?
- प्रश्न- प्रसवपूर्ण देखभाल बच्चे के पूर्ण अवधि तक पहुँचने के परिणाम को कैसे प्रभावित करती है ?
- प्रश्न- प्रसवपूर्ण जाँच के क्या लाभ हैं ?
- प्रश्न- विकास को प्रभावित करने वाले कारक कौन-कौन हैं ?
- प्रश्न- नवजात शिशु की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन करो।
- प्रश्न- शैशवावस्था में (0 से 2 वर्ष तक) शारीरिक विकास एवं क्रियात्मक विकास के मध्य अन्तर्सम्बन्धों की चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- नवजात शिशु की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शैशवावस्था में बालक में सामाजिक विकास किस प्रकार होता है?
- प्रश्न- शिशु के भाषा विकास की विभिन्न अवस्थाओं की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- शैशवावस्था क्या है?
- प्रश्न- शैशवावस्था में संवेगात्मक विकास क्या है?
- प्रश्न- शैशवावस्था की विशेषताएँ क्या हैं?
- प्रश्न- शिशुकाल में शारीरिक विकास किस प्रकार होता है?
- प्रश्न- शैशवावस्था में सामाजिक विकास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखो।
- प्रश्न- सामाजिक विकास से आप क्या समझते है ?
- प्रश्न- सामाजिक विकास की अवस्थाएँ कौन-कौन सी हैं ?
- प्रश्न- संवेग क्या है? बालकों के संवेगों का महत्व बताइये ।
- प्रश्न- बालकों के संवेगों की विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- बालकों के संवेगात्मक व्यवहार को प्रभावित करने वाले कारक कौन-से हैं? समझाइये |
- प्रश्न- संवेगात्मक विकास को समझाइए ।
- प्रश्न- बाल्यावस्था के कुछ प्रमुख संवेगों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- बालकों के जीवन में नैतिक विकास का महत्व क्या है? समझाइये |
- प्रश्न- नैतिक विकास को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारक कौन-से हैं? विस्तार पूर्वक समझाइये?
- प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास क्या है? बाल्यावस्था में संज्ञानात्मक विकास किस प्रकार होता है?
- प्रश्न- बाल्यावस्था क्या है?
- प्रश्न- बाल्यावस्था की विशेषताएं बताइयें ।
- प्रश्न- बाल्यकाल में शारीरिक विकास किस प्रकार होता है?
- प्रश्न- सामाजिक विकास की विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- संवेगात्मक विकास क्या है?
- प्रश्न- संवेग की क्या विशेषताएँ होती है?
- प्रश्न- बाल्यावस्था में संवेगात्मक विकास की विशेषताएँ क्या है?
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- प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास की विशेषताएँ क्या हैं?
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- प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास से आप क्या समझते हैं? किशोरावस्था में संज्ञानात्मक विकास किस प्रकार होता है एवं किशोरावस्था में संज्ञानात्मक विकास को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारकों का उल्लेख कीजिए?
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- प्रश्न- क्या मध्य वयस्कता के दौरान मानसिक क्षमता कम हो जाती है ?
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- प्रश्न- उत्तर वयस्कावस्था (50-60 वर्ष) में हृदय रोग की समस्याओं का विवेचन कीजिए।
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- प्रश्न- उत्तर वयस्कावस्था में स्वास्थ्य पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- स्वास्थ्य के सामान्य नियम बताइये ।
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- प्रश्न- आत्म अवधारणा की विशेषताएँ क्या हैं ?
- प्रश्न- उत्तर प्रौढ़ावस्था के कुशल-क्षेम पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
- प्रश्न- संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- जीवन प्रत्याशा से आप क्या समझते हैं ?
- प्रश्न- अन्तरपीढ़ी सम्बन्ध क्या है?
- प्रश्न- वृद्धावस्था में रचनात्मक समायोजन पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- अन्तर पीढी सम्बन्धों में तनाव के कारण बताओ।